Monday, May 3, 2010

सम्बन्ध :

सम्बन्ध :
सवतंत्रता को समझते हुए हमने सम्बन्ध को भी समझा :सम्बन्ध कब बिगड़ जाते है कब बन जाते है ----इसके बारे में पूर्वानुमान लगाने में हम असमर्थ है --ऐसा लोगों का मानना है -मगर में इसमे संसधन करना चाहूंगा की कब बन जाते है इसका अनुमान लगाना असम्भव है मगर बने हुए सम्बन्ध को बिगड़ने में आपकी खुदकी भूमिका ही निर्णायक होती है :सम्बन्ध के लिए आवस्यक होता है दो व्यक्तियों का मिलन हो अपरोक्ष रूप से या परोक्ष रूप से --जब दो व्यक्ति मिलते है ,तब उनका विचार विनियम का सिलसिला प्रारंभ  हो जाता है दोनों एक दुसरे को परखते है ,एक दुसरे के अन्दर किसी खूबी को पाते है उसे पसंद करते है ,और आपस में वार्ता करते बढती नजदीकियों के दौरान ही हमें ज्ञात हो जाता है की गुन्नो के साथ साथ जिनसे हम सम्बन्ध बड़ा  रहे है ---उसमे कुछ अवगुण भी है /हम उस समय उन अवगुणों को स्वीकार करके ही आगे बड़ते है /मगर अफ़सोस की बाद में वे अवगुण ही संबंद को नकारने के कारणों के रूप में हम अपने बचाव में खुद अपने को भी संतुश्त्ब करने के लिए रुख देते है -----ये कैसी विडंबना है ?

         संबंद शास्त्र बहुत जटिल तो नहीं है :मगर आस्था की आव्सयाकता यहाँ है ;श्रधा,विस्वास ,प्रेम ,स्नेह,इस मार्ग के छायादार वृक्ष है ..जिनकी छाया के बिना संबंद को हासिल नहीं किया जा सकता है ...अपेक्षा ,छल ,कपट,धोखा ,व् लाभ हानि ,व्यापार इस राह के वे कांटे है ...जिनसे बचने के लिए जिस तरह हम पैरों पर जूते पहिनना आवस्यक समजते है :हमें प्रतिदिन स्वाध्याय व् खुद के अवलोकन ,स्व को झाचने की आव्सयाक्ता है ....
      आने वाले दिनों  में हम संबंद के मार्ग में शीतल छाया देने वाले वर्क्षो व् मार्ग में आने वाले कांटो  के बारे चर्चा करने का प्रयास करेंगे //

2 comments:

  1. ;श्रधा,विस्वास ,प्रेम ,स्नेह,इस मार्ग के छायादार वृक्ष है ..जिनकी छाया के बिना संबंद को हासिल नहीं किया जा सकता है ..
    Behad sahi vichardhara hai..

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  2. आपकी रचना पढ़ कर मन गदगद हो गया बधाई हो।
    सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
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