सड़क पर चलते हुए ,वाहन को चलाते हुए ,कार्यालय में कार्य करतेहुए क्या में सहिष्णु हूँ ?क्या में हर निर्णयको लेने से पहिले किसी दूसरे की उपस्थति, उसके बारे में सोच पा रहा हूँ ?या में केवल अपने सुख के बारे में सोचता हुआ ,आराम तलब होता हुआ वाह निर्णय ही लेता हूँ जो मुझे सुख दे ?
कितनी बाते है जो शास्त्रों में हमारे बड़े बड़े ग्रंथों में लिखी हुए है ..कितने संवेगों,आवेगों से परिप्पूर्ण अपना साहित्य हमारे सम्मुख है ..कितने ही जीवन व् चरित्र हमारे उप्नायासो ,कविताऊ ,नाटकों में उच्च मूल्यों का निर्वाह करते हुए हमें प्रेरणा देते है ...हमारे आस पास भी कई ऐसे जीवित चरित्र है जिनको देख कर हम जीई सकते है ...मगर फिर भी हमारे निर्णयों की हमारे व्यवहार की हम खुद अगर समीक्षा करें तो हम अपने को देख कर हैरान हो जायेंगे !
ऐसा क्यूँ है ?क्या ऐसा में ही महसूस कर रहा हूँ ,या और आप में से भी कुछ है जो ऐसा सोचते है ..पाते है ...इस पर चर्चा कर में शायद खुद को और साफ़ कर सकू ..आस पास बढ़ती धुन्ध से निकाल सकू ...क्या आप कुछ कहेंगे ?