Thursday, September 22, 2011

                                                                    प्रेम :यहाँ कृत्तिम कुछ भी नहीं 
रक मात्र स्थल जहा आप अहम् के साथ चले भी गए तो लौटते है  ...अहम् को छोड़ कर...वापिस उसकी फिर कभी दरकार नहीं रहती है ...बहुत से लोग कहते है  की प्रेमियों में झगडा होता है ....मैं ये कहता हूँ की प्रेमी जब तक झगडा करते है तब तलाक ही वे जीवित प्रेमी है ......जहा कृतिमता ढह जाती है ..ह्रदय के द्वार खुल जाते है ...सब कोई अछे लगने लगते है .......

Saturday, September 10, 2011

प्रेम यात्रा

                                                        पहाड़ पर बहुत धुंध है आज .दिखाई नहीं देता हाथ को हाथ..चले जा रहे है रूक रूक..अगर न चले तो शायद इस बीहड़ निर्जन स्थान पर कुछ पलों बाद निशान ही न रहे हमारे होने का ...बहुत उत्साह से हमने खुदने चुनी ये राह ...कामना हुई हम पहुंचे पहाड़ के शिखर ..लोगो ने नातेदारो ..रिश्तेदारों ने बहुत समझाया ..मगर हम माने नहीं....अब पूरी देह एक विरोध के स्वर में मेरे विरोध में खड़ी हो गयी है..मगर संकल्प ..मेरा इरादा अभी भी मुझे लिए जा रहा है उस शिखर की ओर...पूरा रास्ता संघर्ष से भरा ..थकाऊ मगर उत्साह की धुध उंगली थामे चलाये जा रही है..हम  चलते जाते है...अब जिस शिखर पर आरूढ़ होने की कामना की थी .वह भी अश्पष्ट हो गया है..मगर अब यात्रा का वो मुकाम आ गया है..जहा से सिर्फ शिखर की ओर ही जाया जा सकता है.....यहाँ से लौटा नहीं जा सकता ..इसलिए चल रहे है..शायद शिखर पर आरूढ़ हो..या नहीं...अब बस चलना और चलना ...यही यात्रा है..यही जीवन  है..यही प्रेम है यही रिश्ता है....विरोधाभासी ..मगर प्रेरणादायी ...उत्साह और ललक से संचालित ..........