सम्भंधो को नभाने का अपना अंदाज़ कभी भी काम नहीं आता
सम्बन्ध यानि कोई एक ओर है जिससे आप जुड़ना चाहते है ,चाह्तेहाई कि उसकी अस्मिता को अक्षुण रखते हुए ,उसके होने का अहसास करतेहुए..स्वतंत्रता के मायने समझते हुए आप गुजारना चाहते है किसी के साथ अपना समय ...
अब आप को तयार होना पदेग्गा उसकी मान्यताओं को उसकी परम्परून को उसके सोचने के तरीके को उसके जीवन से अपना जीवन का तादात्मय बैठने के लिए ..होले होले अपने को उसमे व् उसको अपने में उसकी विशिष्टताओं को अपनी व् अपनी विउशिस्त्ताओं को उसमे ढलने का धर्य रखना होगा
दोस्त के सही मायने तभी प्राप्त होंगे
मगर सव्काल येही उत्तेर कि अपेक्षा करने लगता है कि क्या मूल रूप से हम किसी और के होने को मानना चाहते है ...उसको स्वीकारने का मतलब है उसके मिर्त्रों को उसके अन्य संबंधो को भी मान्यता देना
क्या हम तयार है ?
ये ऐसे प्रश्न है जो लगते है कि बहुत छोटे व् अनाय्स्यक रूप से बड़े दिखाने कि में कोशिस कर रहा हूँ
मगर
येही मूल प्रश्नही ..और येही समाज में आज विखंडन के कारन भी
क्यूंकि हम आनायास ही प्रेम में एक दूसरे को अपने सुख के लिए इस्तेमाल करने का प्रयास करते है ..और होते भी है
ये इस्तेमाल करने कि परवर्ती शायद हमारे कम संसकारी होने का परिचय है
उसे धीरे से संस्कार में बदलना पड़ता है जैसे बच्चे को सिखाया जाता है कि अपनी जरूरतों को बताने का तरीका
उन जरूरतों के बहाने अनायास बच्चे के अन्दर अगर यह अहसास जागता है कि इसके बहाने में अतिरिक्त स्नेह पा लूंगा तो उसे टोका जाना चाहिए .............(क्रमश)
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Achhe prashn uthaye hain..
ReplyDeletedhanyawad ksham ..aap kuch sujhav de to acha lagega hum aur saaf ho sakenge
ReplyDeleteआप हिंदी में लिखते हैं। अच्छा लगता है। मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं..........हिंदी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत हैं.....बधाई स्वीकार करें.....हमारे ब्लॉग पर आकर अपने विचार प्रस्तुत करें.....|
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