Saturday, April 10, 2010

मुझे फुर्सत हुए आज  !में अपने से मिलने ही इस ब्लॉग पर आता हूँ ...मिल लेता हूँ कुछ क्षण कुछ पल ...अपनी कविताओं से बाहिर ..अपनी नौकरी से बाहिर ...तलाशने को धुंध हटाकर-- अपने दबे असली चेहरे को ..मगर ढूंढ़ नहीं हटती ..बल्कि हटाने के प्रयास में --में शायद नए कोहरे कि चपेट में आ जाता हूँ ...विषय कहा है? मेरे पास- विषय होता तो मुझे अध्ययन करना पड़ता, उस पर विशेस्ग्यता हासिल करनी पड़ती- जो मेरे बस कि है नहीं ...अनुभव है, कितना झूठ, कितना सच. कितना  निजी ,कितना सावर्जनिक ...ये आप ही तय कर पायेंगे ...
                                             में देख रहा हूँ लोग अधिकारों के प्रति ...लोगो से सरकारी तंत्र से सुचना पाने के अधिकार का बहुत उपभोग करने लगे है ..बहुत अच्छा  लगता है ,सुकून मिलता है कि हम पारदर्शी होकर ..सरकारी धन को सही जगह इस्तेमाल करने को मजबूर हो जाये ...या सही होने का ..पारदर्शी होने का ये नया कलेवर हमें और उन्मुक्त करे ...बहुत संभव है कि इसे पोअस्त को पढने वाले लोगो में से अधिकांश ने अपना घर बनाया होगा ..उस घर का तकमीना भि९ बनाया होगा ...उस का हिसाब भी लिखा होगा ....आपने क्या पाया ...क्या आपने तक्मेना जो बनाया वो आपकी वास्तविक लगत से  मिल पाया ?क्या आपने जो नक्सः बनाया वो आपकी पूर्व सोच से पूर्णत मिलता है ?क्या आपने जो हिसाब लिखा वो सैट प्रतिशत सही है ...मोटे मोटे खर्चों को आप याद रुख पाए ..मगर मजदूरी के सामान लेन कि लोअडिंग सवारी के ....मजदूरों कि चाय ,अर्रिक्टी मजदूरी ....आदि अन्य रासी आपको याद नहीं आती ...तो आप उस खर्च को अन्य खर्च बता कर अपने योग को मिलते भर है ....मगर येही काम जब इंजिनियर अपने सरकारी तंत्र में करता है तब ..वाह कई आरोपों का शिकार होता है .......क्या घर से भी बढकर वाह इंजिनियर सरकारी काम को सुख्स्मता से करे ...क्या आप ऐसा मानते है ?
क्या ऐसा होना संभव है कि कोई भी इन्सान  कभीभी अपने घर से अधिक सरकार  द्वारा प्रदत रोजगार से प्रेम करे ?

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