Tuesday, April 13, 2010

प्रेम

प्रेम :प्रेम का क्या भरोसा किससे भी हो जाये ..कब हो जाये ...प्रेम में मर्यादा ..नियम ..आचरण संहिता ...संविधान ...काम करते है???नहीं ...मुझे आधी शती  पार करने के बाद लगा आज कि ये प्रेम कितना मधुर ..कितना आज़ाद ..और कितना निस्वार्थ होता है ..और इतना बेफिक्र भी..वो कभी नहीं सोचता मुझे क्या नुक्सान हुआ है ..क्या नुकसान होगा .,...लोग क्या कहेंगे..ये सब प्रश्न बेंमानी हो जाते है ...प्रेम ..सच्चा प्रेम सम्भंधो में आज़ादी का भी पक्षधर होता है ..वो कभी भी अपने प्रेमी को बांधकर नहीं रखना चाहता ..कभी भी शंका के घेरे में अपने प्रेम को नहीं रखना चाहता ....
  मीरा ने प्रेम का जो उदहारण दिया है ..वह अपने चरम पर है ...एकमूर्ति से लगातार कई बरसों तक यो प्रेम करना राजपाट तक को त्याग कर देना ...वाकई कितना अलोकिक है ..किसी एक में अपने को यो विलोपित कर देना ..
     बदलती  दुनिया कि प्रोधोगिकी में उलझा ये संसार अब प्रेम करने का समय भी नहीं देता ..और मेरे हुए भावनाओं  के तन्तु उस अहसास को कभी पकड़ भी पा जाये तो हैरान हो जाते है ...प्रश्नो का गुब्बार उठ जाता है ..कौन है ये सक्ष जो इतना चाहता  है....मुझमें  ऐसा क्या है ..?
शायद ये खुद अपनी कामनाओं को  पूरा करने का मुझे माध्यम बनाने के लिए इतना मुझसे समपर्क रखना चाहता है ...
प्रोधिगिकी के धुंवे में हम अपना आप खोते जा रहे है ...हमें अपने प्रेम को स्वार्थ के हाथों बच्व्ह्ने से पहिले ..देह कि चकाचोंध में प्रेम को भूलने के पहिले सोचना होगा कि हम कितनी अमूल्य चीच्ज खोने जा रहे है ..कितना अमूल्य साथ जो हमारेजीवन में न जाने किस क्रांति ..कैसा अमूल-चुल परिवर्तन ले आये ..उसको जाति पांति  ...परंपरा ..कायदे कानून ..उम्र कि भेंट चढ़ा न जाने ..कैसा अविस्मरनीय आनद खोने को तयार हो जाते है ..ये हमारे जीवन कि सबसे बड़ी हार है ...अपने प्रेम को पाना ..उसमे हर समय अपने को पाना ..जीवन कि सबसे बड़ी उपलब्धि है .......मुझे उपलब्ध है प्रेम .....आप भी पायें .....

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